भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भैया जी को देखो कितना हँसकर मिलते हैं / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
भैया जी को देखो कितना हँसकर मिलते हैं
मतलब अगर नहीं है तो फिर नहीं पूछते है।
ये सब खॅू पीने वाले है बड़े मतलबी लोग
बिल्कुल भोले लगते हैं जब चिपके रहते हैं।
कल जिनका विश्वास जीतकर जीते बड़ा चुनाव
घोखा देकर नेता जी अब उन्हीं को ठगते है।
चले गये मजदूर गाँव के सब मनरेगा में
कितने लम्बरदार खेत अब परती रखते हैं।
पाँच साल की परधानी में पाँच पुश्त तक खाय
बारहमासी पेड़ बाग़ में फलते रहते हैं।