काहे के पुरुष जाला हाट वाट भात खाला, पछिम पछिम प्रतच्छ होला देह कै विधसना।
का चढ़े सुमेरसिंग पूजले पषान-लिंग, कौन काज हिंगलाज जीभ काटि वैसना॥
ढाढ़ होला काहे लागि आसपास वारे आगि, काहे केहु भावेला जे भुइयाँ खोटि पैसना।
धरनी कहेला परपंच पंच! काहे लागि, हिय ना जपेला पुनि रम राम कैसना॥16॥