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भोपाल में केरल / राधावल्लभ त्रिपाठी
Kavita Kosh से
उतरती है साँझ के आकाश से
तमालवन की असंख्य सघन छायाएँ
और तिरने लगती हैं प्रकाश की नदी के बीच बीच
भोपाल के तालाब के किनारे-किनारे
केरल कन्याओं के झुंड
जैसे चलते हों निहारिकाओं में।
रेस्तराँ में
झक सफ़ेद कपड़े पहने कृष्णवर्ण
परोसते हैं कषाय कॉफ़ी
निःस्पृह केरल के लड़के
सफ़ेद कप में झलकती कषाय कॉफ़ी
अंधेरे की परतों में लिपटी
प्रकट करती है
केरल कन्या की साँवली आभा
धुँधली रोशनी उसमें प्रतिबिम्बित
पकते नारियल के फलों को लपेटती हरी छायाएँ जैसे केरल की।
साँवली श्यामला हिल्स की
मरकत-सी चिकनी धरती पर
उभरती है केरली के कपोल की छवि
सचिवालय के भवनों को आशंकित होकर छोड़-छोड़कर
भोपाल में घूमता है जहाँ-तहाँ केरल।