भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोर भए नवकुंज सदन तें / छीतस्वामी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोर भए नवकुंज सदन तें,आवत लाल गोवर्धन धारी.
लटपट पग मरगजी माला,सिथिल अंग डगमग गति न्यारी.
बिनुगुन माल बिराजति उर पर,नखछत द्वैज चन्द अनुहारी.
छीतस्वामि जब चितय मो तन,तब हौं निरखि गई बलिहारी.