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भोर भयौ मेरे लाड़िले, जागौ कुँवर कन्हाई / सूरदास

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राग बिलावल


भोर भयौ मेरे लाड़िले, जागौ कुँवर कन्हाई ।
सखा द्वार ठाढ़े सबै, खेलौ जदुराई ॥
मोकौं मुख दिखराइ कै, त्रय-ताप नसावहु ।
तुव मुख-चंद चकोर -दृग मधु-पान करावहु ॥
तब हरि मुख-पट दूरि कै भक्तनि सुखकारी ।
हँसत उठे प्रभु सेज तैं, सूरज बलिहारी ॥

भावार्थ :-- `मेरे दुलारे लाल! सबेरा हो गया, कुँवर कन्हाई जागो । हे यदुनाथ ! तुम्हारे सब सखा द्वार पर खड़े हैं, (उनके साथ) खेलो। मुझे अपना मुख दिखलाकर तीनों ताप दूर करो । मेरे नेत्र तुम्हारे मुखरूपी चन्द्रमा के चकोर हैं, इन्हें (अपनी) रूपमाधुरी का पान कराओ ।' तब भक्तों के हितकारी प्रभु श्यामसुन्दर अपने मुखपर से वस्त्र हटाकर हँसते हुए पलंग परसे उठे । सूरदास अपने इन स्वामी पर बलिहारी है ।