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भोर होती है ! / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
और अब आँसू बहाओ मत
- भोर होती है !
दीप सारे बुझ गये
- आया प्रभंजन,
सब सहारे ढह गये
- बरसा प्रलय-घन,
हार, पंथी ! लड़खड़ाओ मत
- भोर होती है !
बह रही बेबस उमड़
- धारा विपथगा,
घोर अँधियारी घिरी
- स्वच्छंद प्रमदा,
आस सूरज की मिटाओ मत
- भोर होती है !