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भोर / नरेश पाण्डेय 'चकोर'
Kavita Kosh से
भोरकॅ लाली
पूबें देखॅ
फुटलॅ आबै छै
ठीक ओन्हैं
जेना कि
कली चटकै छै
लाली छटकै छै
छबि फैललै
छितिज के ऐङना में।
भोरकॅ लाली
गोल-गोल
लाल-लाल
बड़ी सुन्दर
मानॅ कि
मद भरलॅ प्याला
बेहद सुख दै बाला
प्रेमिका के हाथ सें
प्रेमी पीये छै।
भोरकॅ लाली
मानॅ कि
बिहौती कनयांय के
करिया बाल पर
चमकै छै
सिन्दूर लाल लाल
टिक्का टिकलॅ कपाल
बिहौती बॅर रं
सबे मन ललचै छै।
भोरकॅ लाली
लाल चूनर
लाल परी के
जे सुन्दर छै
चंचल छै
बेहिसाब फहरै छै छवि
कवि मन हरसै छै।
भोरे उठी केॅ
सजी-धजी केॅ
खुशी-खुशी
हर रोज
बे रोक टोक
किरण फुटै छै
लाली लुटै छै
धरती के
ऐङना में।