भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोली इच्छाएं-2 / अनूप सेठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लौकी बन लटकूं
मुदगर सी लंबी हो या हंडिया
फर्क नहीं पड़ता
दिल की बीमारी में बाबा कोई
रस निचोड़ के पिलवा दे या
अंतस को खाली करके
तार पर सुर तान करके
इकतारा बन बाजूं
कड़ियल हाथों में साजूं.