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भ्रम / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
बड़ा मुश्किल लगता है
सचमुच के पहाड़ से टकराना
पहाड़ पथरीला हो या
कच्चा
मुश्किल लगता है टकराना
पहाड़ पिता हो
या सत्ता
पत्नी हो या बच्चा
सामना होते ही/बदल जाती हैं
योजनाएं.
दरअसल यही है
हमारी असलियत।
हम मुट्ठियां तान
हवा में उछालते हैं
हर असली पहाड़ से कतरा
बना लेते हैं घास के पहाड़
तोड़ते हैं उन्हें ही बार-बार
और खुद को
महान समझने का
भ्रम पालते हैं।
1983