सूरज डूब रहा है
और अँधेरा घिरने वाला है 
मेरे आगे जो रास्ता है 
काँटे बिखरे हैं उस पर 
क्या करूँ मैं ? 
बचा कर निकल जाऊँ इन्हें, बगल से 
या चला जाऊँ छलाँग, इनके पार 
क्या करूँ मैं ? 
शायद आख़िरी यात्री हूँ 
आज की साँझ 
संभव है कोई आ रहा हो 
मेरे भी बाद 
उसे दिखेंगे नहीं अँधेरे में, ये काँटे 
क्या करूँ मैं ? 
रुक जाऊँ काँटो के पहले 
सचेत करने के लिए आने वालों को 
या चुन कर हटा दूँ राह से इन्हें 
क्या करूँ मैं ? 
मेरी मंज़िल दूर है, प्रभु 
मगर 
क्या यह मेरी मंज़िल नहीं ?