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मंत्र-मुग्ध / महेन्द्र भटनागर

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गहन पहेली,
ओ लता - चमेली!
अपने
फूलों में / अंगों में
इतनी मोहक सुगन्ध
अरे,
कहाँ से भर लायीं!
ओ श्वेता!
ओ शुभ्रा!
कोमल सुकुमार सहेली!
इतना आकर्षक मनहर सौन्दर्य
कहाँ से हर लायीं!
धर लायीं!
सुवास यह
बाहर की, अन्तर की
तन की, आत्मा की
जब-जब
करता हूँ अनुभूत _
भूल जाता हूँ
सांसारिकता,
अपना अता-पता!
कुछ क्षण को इस दुनिया में
खो जाता हूँ,
तुमको एकनिष्ठ अर्पित हो जाता हूँ!
ओ सुवासिका!
ओ अलबेली!
ओ री, लता - चमेली!