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मईया हमारी विनती सुन ले / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
मईया हमारी विनती सुन ले यहाँ पर आकर,
हम थक गये हैं कबसे तुमको बुला बुलाकर।
माथे मुकुट विराजे, खप्पर त्रिशूल धारी,
लक्ष्मी, भवानी, दुर्गा, तुमने है रूप धारी
दुनिया तमाम चलती तुमसे ही दम ये पाकर।
फैली हुई उदासी, दुष्टों का बोल बाला,
चारों तरफ अंधेरा, फैला दो तुम उजाला,
ममता का दीप मईया, घर-घर में तुम जलाकर।
जयकार हो रही है, गुणगान हो रहा है,
अक्षत व धूप-दीप से, ध्यान हो रहा है,
पूजा की थाल रखे, चरणों में हम सजाकर।
विद्या का दान देना, वाणी सुधार देना,
कभी भटक न जाएँ, सुंदर विचार देना,
पूजन तेरा करेंगे, मूर्ति तेरी बनाकर।