मगध में प्रतिशोध ही पल रहा है / संजय तिवारी
जरासंध के बाद जो मुक्त हुआ
उस मगध के उत्कर्ष को भी जानती हूँ
युगाब्द की हर घटना को मानती हूँ
तुम भी तो मगध को हाँक रहे थे
हर्यको को भी माप रहे थे
अहिंसा के ज्ञान को ही ताप रहे थे
तुम्हारे मित्र ही तो थे विम्बिसार
लेकर उन्ही का आभार
तुमने खूब किया विस्तार
फिर भी पुत्र के ही हाथो
श्रेणिक क्यों मारे गए?
कहाँ तुम्हारे धम्म के नारे गए?
अजातशत्रु की सत्ता के साथ
खूब मजबूत हुए तुम्हारे हाथ
राजगीर की सप्तपर्णी गुफा
और प्रथम बौद्ध संगीति
बड़ी मीठी थी वह प्रीति
लेकिन कुणिक भी अपने पिता की तरह
अपने ही पुत्र के हाथो मारे गए
उदयिन को तुम रास नहीं आये
उसे महावीर भाये
अनिरुद्ध
मुग़ल
नागदशक
यानी दर्शक तक ऐसे ही चला
तुम्हारा ज्ञान काफी पला
शिशुनाग से कालाशोक तक
बीत चुके थे
तुम्हारे परिनिर्वाण के
सौ साल
यही तो था
धम्म का हाल
वैशाली फिर तुम्हें भा गयी
आम्रपाली की याद आ गयी
यह क्या थी तुम्हारी नीति
वही हुई जब दूसरी
बौद्ध संगीति
गौतम
तुम्हें मगध इतना क्यों भाया?
किसी को कुछ बताया?
रक्तरंजित इतिहास के साथ
क्यों चलते रहे नाथ?
तुम्हारे बाद भी
सदियों से
यहाँ यही चल रहा है
मगध में प्रतिशोध ही पल रहा है।