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मगर अब हो गया खारा / चन्द्रगत भारती
Kavita Kosh से
कसम से था बहुत मीठा
कभी इस झील का पानी
मगर अब हो गया खारा
नहाया था यहीं तुमने।
जब पहली बार देखा था
हया सिमटी दुपट्टे से !
खड़ी बेफिक्र सी थी तुम
सनम लिपटी दुपट्टे से !
तुम्हे सब याद ही होगा
मेरे मासूम से दिल को
चुराया था यहीं तुमने
सितारे सो गये थे सब
जहाँ सारा ये सोया था !
अकेले हम ही दोनों थे
लिपट तुमसे मैं रोया था !
तुम्हें सब याद ही होगा
रख काँधे पे सर मेरा
सुलाया था यहीं तुमने।
हसीं उस रात का आलम
हुई थी धड़कने पागल !
मुझे घेरे हुए थे उफ !
तुम्हारी जुल्फ के बादल !
तुम्हें सब याद ही होगा
मुझे बाँहों में भर शम्माँ
बुझाया था यहीं तुमने।