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मगर हुआ इस बार भी वही हर कोशिश बेकार गई / डी. एम. मिश्र
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मगर हुआ इस बार भी वही हर कोशिश बेकार गई
दाग़ी नेता जीत गये फिर भेाली जनता हार गर्इ।
फिर चुनाव की मंडी में मतदाताओं का दाम लगा
फिर बिरादरीवाद चला एकता देश की हार गई।
कहाँ कमीशन और घूस की जाँच कराने बैठ गये
बड़े घोटालों की ही संख्या अरब खरब के पार गई।
कल टीवी पर देखा मैने कल छब्बीस जनवरी थी
लोकतंत्र था शूट -बूट में बुढ़िया पाला मार गई।
उस मजूर की नज़र से लेकिन कभी देखिये बारिश को
झड़ी लगी है आप के लिए उसकी मगर पगार गई ।
जनता ने तो चाहा था लेकिन परिवर्तन कहाँ हुआ
चेहरे केवल बदल गये , पर कहाँ भ्रष्ट सरकार गई।