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मचिया बैठल तोहे माता कोसिला रानी / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में प्रचलित रीति के विपरीत पद्धति अपनाई गई है। यहाँ वर का पिता ही अपने पंडित को भेजकर योग्य लड़की ढुँढ़वाता है। पंडित जब निराश होकर लौटता है, तब उस पर डाँट पड़ती है। पंडित फिर तत्क्षण लड़की ढूँढ़ने चल पड़ता है और सीता के रंग रूप को देखकर चकित रह जाता है।
इस गीत में एक और अस्वाभाविक बात का उल्लेख है। वह है-विवाह के पहल ही सीता के सीमंत में अहिबात का चिह्न देखना। संभव है, सीता ने विवाह के पूर्व ही राम का पति के रूप में वरण कर लिया हो।

मचिया बैठल तोहें माता कोसिला रानी, सुनु राजा बचन हमार हे।
जलम जीवन राजा एको नहिं राखल, मोर घर राम कुमार हे॥1॥
हँकरहुँ डकरहुँ<ref>जोर-जोर से पुकारना; बुलाकर लाना; आमंत्रित करके लाना</ref> नगर के बाभन, सुनु राजा बचन हमार हे।
जाहोक<ref>जाओ</ref> बाभन देस बिदेस, जहाँ भेँटे कनिया कुमार हे॥2॥
उत्तर खोजल दखिन खोजल, खोजल मगहा मुँगेर हे।
रामजी के जोगे कनिया नहिं भेंटल, आबे राम रहत कुमार हे॥3॥
मारबो रे बाभन पीठि बोखारब<ref>मारकर पीठ उधेड़ना</ref>, पँजराहिं तोड़ब बोल हे।
रामजी के लग मुखे मुख बोलै, रीखि घर कनिया कुमार हे॥4॥
ओतहिं<ref>वहाँ से</ref> सेॅ चलल बाभन, पहुँचल रीखि दरबार हे।
केऊ<ref>कोई</ref> रे दाता बिधाता, पंथ के पनियाँ पिलाउ हे॥5॥
एक हाथ लेल सीता झारी तमरुआ, दोसर हाथ सिंहासन पाट<ref>पीढ़ा</ref> हे।
पैर धोउ<ref>धोइए</ref> पाटे बैठू बाभन पुरोहित, पीबी लेहो<ref>पी लो</ref> गँगाजल नीर हे॥6॥
हाथ परेखल सीता के पैर परेखल, परेखल आठो अँग हे।
आठो अँग सीता बिजुली छिटकी गेल, सिउथी<ref>सीमांत; माँग जिसमें विवाहिता स्त्रियाँ सिन्दूर लगाती हैं</ref> भरल अहिबात हे॥7॥
ओतहिं सेॅ चलि भेल बाभन, आबि गेल राज दरबार हे।
राम के जोगे कनिया एक भेंटल, आबे राजा साजु बरियात हे॥8॥
हाथियो साजल घोड़बो साजल, साजल लोग बरियात हे।
रामजी के घोड़िया भले भाँति साजल, मोतियहिं लागल लगाम हे॥9॥

शब्दार्थ
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