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मचिया बैठल राजा दसरथ, रानी सब अरज करे रे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गुरु वसिष्ठ से प्राप्त जड़ी को लेकर राजा दशरथ अपनी रानियों को देते हें। तीनों उसे पीसकर पीती हैं तथा गर्भवती हो जाती हैं। तीनों को यथासमय पुत्र प्राप्ति होती है। राजा दशरथ खुशी में सारा राज्य ही लुटाने लगते हैं, लेकिन सौरगृह से ही सुमित्रा कहती है-‘राजा, पुत्रों की ओर भी देखो। इनके लिए रखकर ही लुटाना।’

मचिया बैठल राजा दसरथ, रानी सब अरज करे रे।
ललना रे, मोर अजोधा लागै छै भेआमन, कि एक रे बालक बिनु रे॥1॥
ऐतना बचन सुनि राजा दसरथ, मने मन हुलसत रे।
ललना रे, चलि भेलै गुरु के दुआरी, कि जहाँ गुरु बसिठ मुनि रे॥2॥
झोरी<ref>झोली</ref> में से देलन बसिठ मुनि, लियो राजा दसरथ रे।
ललना रे, दियौनगन<ref>दीजिए</ref> कोसिला रानी क हाथ, कि तीनों रानी बाँटि खैती रे॥3॥
पहिले जे पिबलन कोसिला, कि तब कय कंकइ रानी रे।
ललना रे, सिला धोए पिबलन सुमितरा, कि तीनों रानी गरभ सेॅ रे॥4॥
कोसिला के जलमल राजा रामचंदर, कंकइ भरथ जी रे।
ललना रे, सुमितरा के लखन सतरुहन कि तीनों घर बधैया बाजै रे॥5॥
कोसिला लुटाबै अन धन सोनमा, कि कंकैया रानी कँगनमा न रे।
ललना रे, राजा दसरथ लुटाबै अजोधा, कि कुछु नहिं राखब रे॥6॥
सौरी घर से बोलै सुमितरा रानी, कि सुनु राजा दसरथ रे।
ललना रे, राखि राखि लुटाबू अजोधा राज, कि पुतर फल पाओल रे॥7॥

शब्दार्थ
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