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मछली-मछली पानी दे / नईम
Kavita Kosh से
मछली मछली पानी दे,
ओस चाटती प्यासों को तू-
रानी असली पानी दे।
नही, यहाँ पर मेघ न कोई,
नदी न कोई, झील नहीं!
दत्तक कुएँ, बावड़ी जारज,
पोखर कोई असील नहीं।
पेट पूजने पानी दे।
प्यासें लगतीं भरी पेट को
रोटी की आसानी दे।
रूप, रंग, रस, रानी दे
दे न सके पानी, तो प्यासें
कद्दावर मर्दानी दे।
मक्का ज्वार,
बाजरा कंगनी
मट्ठा और महेरी दे,
मन-मन कुटकी, मन-मन कोदो
चोखे बाँट पसेरी दे।
सूखा भूसा सानी दे।
पेट-पीठ के दीन-धरम को-
गाँठों कौड़ी कानी दे।
फैले जाल, बंसियाँ डाले
डोर डग्गियाँ सतरंगी,
पानी पर चौतरफ छावनी,
पड़ी हुई भारी जंगी।
बेमानी को मानी दे।
अपनी पीर परमप्रिय, लेकिन
थोड़ी-सी बेगानी दे।