धरती में गुँथी हैं
मेरी मजबूत जड़ें
वह उन्हे मर्म तक 
साधे हुए है।
अपने तने के बल पर 
उग कर
मैं मज़बूत अनुभव कर रह हूँ।
पृथ्वी मेरी माता है
जड़ें मेरी जीवन 
लेकिन मैं अजाना
जान कर भी 
उन्हें देख नहीं पाता।
खुले आकाष में
कौंपलों को सँवारती 
टहनियाँ फूटती हैं
मेरी त्वचा का रेषा-रेषा
पृथ्वी से ही 
रस लेता है
मैं वर्षा तूफ़ान और तपिश में 
तीखी कड़वाहटें झेलता रहा हूँ
शाखा-प्रशाखाओं के रूझान देखकर 
जाना 	
जड़े गहरी और गहरी 
पौंड़ रही हैं।
जब वसंत आता है
तो निरंग होकर खिलता हूँ
फिर भी 
अपना जीवन स्रोत नहीं देख पाता 
वे मुझे वृक्ष कहने को
मेरे पके फलों की 
प्रतीक्षा करते हैं।
ओह काल, ओ जीवन, ओ गति
बिना मेरी जड़ों को खोजे 
वे मुझे अखिनल नहीं जान पाएँगे।
2006