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मजलां मारै हेलौ / वाज़िद हसन काज़ी
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पाणी
बैवै ऊपरां सूं नीचै
चुपचाप
बणावै आपरौ मारग खुद
आवौ भलैई कितरा ई अटकाव
पण
करै लगौलग आपरौ काम
अर पूग जावै
आपरी मंजळ तांई
के
सूख'र मेट देवै
आपरौ अेनांण
देवै सीख मिनख नैं
चुपचाप लगौलग
आपरौ काम करियां ई
मिळै मंजळां
अर मिटती जावै अबखायां
आपौ आप
तौ पकड़ गैलो
मंजलां मारै हेलौ।