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मजहब की डाल / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

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तुम्हारे आँगन के
गुलमुहर की शरारती डाल
इठलाया करती थी
मेरी छत पर चढ़कर साधिकार
जाड़े की धूप में
मेरा मन हो जाता है हरा-भरा
चटख हरी पत्तियों को देखकर
कुछ तो अनाम रिश्ता था
हमारे बीच
खींच कर काट डाली है तुमने वह
डाल जो चढ़ रही थी
गैर मजहबी मेरी छत पर
बड़ी निर्ममता से
धूल-धूसरित पड़ी है तुम्हारे आँगन में
छिन्न-भिन्न उदास और
पीली पड़ चुकी डाल
खुश हो तुम कि तुमने
कैद कर लिया है अपने मजहब को
इस तरह
हरीतिमा की हत्या करके।