भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मज़ाक / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
दिल से सौ-सौ दुआएँ देकर भी तुमने दिल को मगर, पनाह न दी, कितना तीखा मज़ाक है गोया रोखनी बख्श दी, निगाह न दी </poem>