मत कर यों बदनाम / बालस्वरूप राही
मत कर यों बदनाम मुझे तू व्यर्थ सहेली बावरी,
देखी तक भी नहीं आज तो मैंने सूरत सांवरी।
होली का यह रंग-रंगीला आया क्या त्यौहार है
आंगन डूबी, देहरी डूबी, डूब गया हर द्वार है
गली गली ने वृन्दावन की खेली इतना फाग री
इंद्रधनुष-सी सतरंगी बहती जमुना की धार है।
कोई खेल गया होली मेरे दर्पण के साथ भी
आज मलिन हो गया चांद जैसा उसका गात भी
अस्त व्यस्त श्रृंगार इसी से मत कर कुछ संदेह तू
आज नहीं छू सके कन्हैया मेरा कंवारा हाथ भी।
बिखरी अलकों, फैले काजल पर मत दे कुछ ध्यान तू
सच कहती हूँ गई नहीं मैं आज कृष्ण के गांव री।
सूरज जागा भोर हुई चल दी पनघट की ओर री
खींच न पाई आज मुझे वंशी की लय की डोर री,
जल भरने में नरम हथेली की मेहंदी फीकी पड़ी।गागर छलकी, भीग गया चोली का छोर री।
बहुत तक गई हूँ इससे ही आंख अभी तक बन्द है
परस कृष्ण का नहीं, हाथ में यह चंदन की गंध है
मेरी चूनरिया में पीले चिन्ह देख कुछ सोच मत
पीताम्बर का रंग नहीं यह गेंदे का मकरन्द है।
सच सच मन की बात कह रही तुझसे कौन छिपावरी
आज न भरमा पाई पांवों को मधुवन की छांव री।
घेर लिया पथ पर सखियों ने किया मुझे बेहाल है
मन अब तक घबराया सा है टीम की नहीं संभाल है
अभी अभी आई हूँ होली खेल सखी के साथ मैं
नहीं लाज का रंग गाल पर यह तो लाल गुलाल है।
मेरी ही सौगंध तुझे मत छेड़ मुझे बेबात
बुरी बात मत ला कुछ मन में, जोड़ूँ तेरे हाथ री
जाने किसकी मुख दीखा था सुब्ह सवेरे सामने
थमती नहीं आज तो पल भर आंसू की बरसात री।
वैसे ही सब मुझे देखते हैं शंकाकुल आंख से
झूठ बात फैला मत जग में, पकड़ूँ तेरे पांव री।