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मत कहो कि बाज़ुओं में शक्ति कम है / विनोद तिवारी
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मत कहो कि बाज़ुओं में शक्ति कम है
इस सुबह का सूर्य कुछ ज़्यादा गरम है
लोग हैं बस चेतना से शून्य सारे
हर किसी निष्प्राण पत्थर को भरम है
मारना,पुचकार देनाम राज करना
आपका सौजन्य, अंदाज़े-करम है
दीप मैं लघुकाय पर तम से लड़ूँगा
एक कण भी रौशनी यदि है अलम है
व्यक्तिगत ख़ुशियों से बहलाओ न मुझको
मेरे सीने में ज़माने भर का ग़म है