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मत कहो / जगदीश पंकज
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मत कहो कोई कहाँ नंगा खड़ा है
कीजिए परिधान
की गुण-वन्दना
शब्द का उपयोग अब जोख़िम भरा है
इसलिए संकेत की भाषा सँभालो
अब शिलाओं पर नहीं केवल हवा में
अक्षरों की कुछ नई तकनीक डालो
मत सतह की सलवटों को आँकिए
झाँकिए नीचे
कहाँ पानी घना
कब तलक निरपेक्षता के नाम पर
सार्थक प्रतिवाद से बचते रहोगे
बढ़ रहा है जिस तरह भाषा प्रदूषण
तो असहमति को भला कैसे कहोगे
तोड़कर विकलांग चिन्तन की कसौटी
दीजिए अनुभूति को
स्वर चेतना