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मत लिखो तुम गीत मेरे नाम / अमरेन्द्र

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मत लिखो तुम गीत मेरे नाम
मैं तुम्हें अपना न कह दूँ प्यार में।

रेत को फिर से बनाओ न नदी
बून्द भर पानी को बीते युग-सदी
हैं बहुत उलझन, बहुत बदनामियाँ
दिल कहीं जो लग गया कचनार में।

एक ठण्डी-सी हवा बहती बहुत
मत खिलाओ मोगरे, महकेगी रुत
ले के उड़ जायेगी खुशबू यह हवा
फिर रहेगी बात क्या दो-चार में।

मन तो मन है, क्या ठिकाना क्या करे
बन्धनों को तोड़, लेता भाँवरे
रेत को सागर बना कर इस तरह
नाव फूलों की न छोड़ो धार में।