भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मधुऋतु मधुकर बांटय / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
चहुँदिस चान छिड़िआबय, सिनेहिया।
पतझड़ कें संगे-संग परती नचैये।
जरलाही कोइली ने की-की बजैये।
हरियर-हरियर धरती कें आँचर मे-
चकमक गोटा लगाबय, सिनेहिया।
जरि गेल जाड़ो कें दिन अन्हरिया।
पीपर कें पात गोर कोनो ने करिया।
पुरूब कें ओर सँ डोर लगौने-
सुरूज किरण छिटकाबय, सिनेहिया।
सरिसों सरस-साज श्रृंगार कयने।
गर्दनि मे पीयर कें हार पहिरने।
फूलक पात पर घात लगौने-
मस्त भ्रमर गुन-गुनाबय, सिनेहिया।
मंजर सुगन्ध बन्द चुबैछ काँच।
पुलकित पात-पात नाचैछ गाछ।
बांसक दोगे सँ घौनी चिरइयाँ-
सुतल पिरितिया जगाबय, सिनेहिया।
तरूणीक तान तारूण्यक ताल।
टेसू-सिंगरहार-तिलकोर लाल।
बितल वियोगिनी कें दारूण अन्हरिया-
मधुऋतु मधुकर बाँटय, सिनेहिया।