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मधुर-सुमधुर, मधुर उससे भी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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मधुर-सुमधुर, मधुर उससे भी, परम मधुर, उससे भी और-
मधुर-मधुरतम, नित्य-निरन्तर वर्द्धनशील मधुर सब ठौर॥
अंग-अंग माधुर्य-सुपूरित, मधुर अमृतमय पारावार।
अखिल विश्व-सौन्दर्य, मधुर माधुर्य सकलका मूलाधार॥
कनक-कमल-कमनीय कलेवर, सहज सौरभित मधुर अपार।
नेत्रद्वय, मुख, नाभि, पदद्वय, हस्तद्वय द्युति-सुषमागार॥
विविध वर्ण, सौरभ विचित्र युत अष्टस्न् कमल ये अति अभिराम।
यों विकसित नव-कमल मिलितसे, अनुपम शोभा हुई ललाम॥