मधुशाला / भाग 16 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
देखै छी अपनोॅ आगू में
कहिये सें माणिक-हाला,
देखी रहलौं अपनोॅ आगू
कहिये सें कंचन-प्याला,
‘आबेॅ पैलौं !’ कहलेॅ दौड़ौं
कहिये सें एकरोॅ पीछू,
मतर सरंग-रं दूरे रहलै
हमसें हमरे मधुशाला ।91
कखनू रात हताशा के छै
जैमें गुम मधु रोॅ प्याला,
तखनी कहाँ मधु रोॅ आभा
गुम होबै साकीबाला,
कखनू आस-उजास करी केॅ
प्याला केॅ छै चमकाबै,
आँखमिचैनी हमरै सें ही
खेलै हमरोॅ मधुशाला ।92
‘आगू आवोॅ’ कही केॅ पीछू
हाथ करेॅ साकीबाला,
ठोर लगाबै लेॅ कहियो केॅ
हटकाबै हरदम प्याला;
नै मालूम कहाँ तक हमरा
यैं हमरा केॅ लै जैतै,
आगू करी-करी केॅ हमरा
पीछू हटकै मधुशाला ।93
हाथोॅ में आवै-आवै सें
पहिलैं फिसलै छै प्याला,
ठोरोॅ पर आवै-आवै में
पहिलैं ढुलकै छै हाला;
दुनियाँवाला, आवी हमरोॅ
किस्मत रोॅ खूबी देखोॅ,
रही-रही जाय बस हमरै ही
मिलतें-मिलतें मधुशाला ।94
मिलनै नै छै, तेॅ कैन्हें नी
होय अलोपित छै हाला,
मिलनै नै छै, तेॅ कैन्हें नी
होय अलोपित छै प्याला,
दूरो नै कि हिम्मत हारौं
पासो नै कि पावी लौं;
बेरथ ही दौड़ाबै हमरा
मरु में मृगजल मधुशाला ।95
मिलै नै जों, ललचाबै कैन्हें
बेकल बड़ी करै हाला,
मिलेॅ नै जों, तरसाबै कैन्हें
आ तड़पाबै छै प्याला,
हाय, भाग्य रोॅ क्रूर लेखनी
माथा पर ई खोदलकै-
दूरे रहतै मधु रोॅ धारा
भले नगीचे मधुशाला ।96