मधुशाला / भाग 17 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
कखनी सें छी मदिरालय में
नै मिललै अब तांय हाला,
बड़ी जतन सें भरौं, मतरकि
कोय्यो उलटी दै प्याला,
आदम रोॅ ताकत के आगू
भाग्य निबलµसुनतें ऐलौं,
भाग्य प्रबल निर्बल मनुखोॅ रोॅ
पाठ पढ़ैबै मधुशाला ।97
किस्मत में जों खाली खप्पर
की खोजै छेलां प्याला,
ढूढ़ै छेलां मृगनैनी केॅ,
किस्मत में तेॅ मृगछाला,
कौनें अपनोॅ भाग्य बुझै में
हमरे-रं धोखा खैलकै;
किस्मत में तेॅ औघट-मरघट
खोजै छेलां मधुशाला ।98
ऊ प्याला केॅ चाहौं, जे छै
दूर तरत्थी सें प्याला,
ऊ हाला सें चाव बड़ी छै
दूर अधर सें जे हाला,
प्यार मिली जैबोॅ में नै छै
पाबै रोॅ अरमानोॅ में,
पाबी लेतियै, तेॅ एतना नै
कभी सुहैतियै मधुशाला ।99
साकी केरोॅ पास तनी-टा
श्री, सुख, सम्पत रोॅ हाला,
सौंसे जग पीयै लेॅ आतुर
लै-लै किस्मत रोॅ प्याला,
कुछ आगू छै ठेली-ठाली
ढेरे तेॅ दबिये मरलै;
जिनगी रोॅ संघर्ष नै छेकै
भीड़ ठसाठस मधुशाला ।100
साकी तोरोॅ पास जबेॅ छौं
एतनै थोड़ोॅ टा हाला,
कैन्हें पीयै रोॅ किंछा सें
करौ सभै केॅ मतवाला,
हम्में हाय पिसैलोॅ बेदम
तोहें छिपलोॅ मुस्काबोॅ;
दुःख छै, हमरे ठो पीड़ा सें
खेल करै छै मधुशाला ।101
साकी, मरी-खपी कोय्यो जों
आगू आनलकै प्याला,
पीएॅ पारलै दू बूंदोॅ सें
ज्यादा नै तोरोॅ हाला,
जिनगी भर रोॅ हाय परिश्रम
लूटी गेलै दू बूंदें;
भोले मनुखोॅ केॅ ठग्गै लेॅ
ही बनलोॅ छै मधुशाला ।102