मधुशाला / भाग 8 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
कारोॅ मेघ अंगूरे लत-रं
आनै खिंची-खिंची हाला,
लाल कमल के कोमल कली के
प्याली, फूलोॅ रोॅ प्याला,
बनी-बनी साकी हिलकोरा
माणिक मधु सें भरी दै छै,
हंस मतैलोॅ-पीवी-पीवी
मानसरोवर मधुशाला । 43
बरफ-पाँत अंगूर लता-सन
बरफोॅ केरोॅ जल-हाला,
चंचल नद्दी साकी होलेॅ
भरलेॅ लहरोॅ के प्याला,
पाटोॅ के कोमल हाथोॅ सें
छलकैलें दिन-रात चलै,
पीवी खेत खड़ा लहराबै
भारत पावन मधुशाला । 44
आय दिखाबै धीर पूत रोॅ
लहू करेजे-रं हाला,
वीर पूत रोॅ मूड़ी-सन टा
हाथोॅ में लै केॅ प्याला,
खूब उदारो, दानी साकी
बनली छै भारतमाता,
प्यासी काली-रं आजादी
मलकाठोॅ-रं मधुशाला । 45
दुतकारकोॅ मस्जिद नें हमरा
बोली-है पीयैवाला,
होनै केॅ ही ठाकुरबाड़ीं
देखी हाथोॅ में प्याला,
कहाँ ठिकानोॅ पैतै जग में
भला अभागा काफिर ई
शरणस्थली-रं जों हमरा
नै अपनैतियै मधुशाला । 46
घूमौं हम्में राही-रं ही
मिलै सभै ठां छै हाला,
सब ठां छै हासिल साकीयो
सब ठां हासिल छै प्याला,
हमरा ठहरै लेली साथी
कहूँ कष्ट जरियो टा नै,
मिलेॅ नै मन्निर, मिलेॅ नै मस्जिद
मिलिये जाय छै मधुशाला । 47
सजै नै मस्जिद, आर नमाजी
बोले छै अल्लाताला
सजी-धजी, पर साकी आबै
बनी-ठनी पीयैवाला,
शेख कहाँ सें तुलना होतै
मस्जिद के मदिरालय सें
जन्मजात राँढे-रं मस्जिद
सदा सुहागिन मधुशाला । 48