मध्यमवर्ग / राखी सिंह
जिनके हिस्से में कम होती हैं खुशियाँ
वो मध्यमवर्गीय मार्ग अपनाते हैं
कम कम ख़र्चते हैं
बचत के प्रयासों में जुटे रहते हैं
फिर भी,
महीने के आख़िर की तरह
दिन का अंत होने तक
चरमरा जाता है उनका बजट
उनके द्वारा किये सारे जतन का मुहं
बंद करके छोड़े ताले की भांति टेढ़ा मिलता है
जिसे वे छोड़कर तो सीधा ही गए होते हैं
उनके प्रयासों के पावं उन्हें मिली सफलता की चादर से बड़े लंबे होते हैं
मुड़ तुड़ कर ढंकते हैं वह स्वयं को
वो जिन्हें नहीं मिलती विरासत में मुस्कुराहटें
किसी मजदूर की भांति कड़ी मेहनत से कमाते हैं थोड़ी-सी हंसी
सहेजते हैं,
ये सहेजना उनकी तसल्ली है
वो तलाश में रहते हैं ऐसी योजनाओं के
जिनके तहत दोगुनी चौगुनी होती हो खिलखिलाने की वज़हें
पर प्रायः ये योजनायें भी
सरकारी दावों की भांति ध्वस्त हो जाती हैं
वो पूरी ताक़त से जुट जाते हैं
फिर नई नीतियों के जुगाड़ में।