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मनदीप कौर-3 / गिरिराज किराडू
Kavita Kosh से
अपने कवि होने से थक गया हूँ
होने की इस अज़ब आदत से थक गया हूँ
कवि होने की कीमत है
हर चीज़ से बड़ी है वो कविता
जिसमे लिखते है हम उसे
लिख कर सब कुछ से बिछड़ने से डर गया हूँ
अपना मरना बार-बार लिख कर मरने तक से बिछड़ गया हूँ
हमारे बाद भी रहती है कविता
इस भूतहा उम्मीद से थक गया हूँ