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मनवाँ सम्हार बार-बार हो, हरिनाम खजनवाँ / करील जी

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मनवाँ सम्हार बार-बार हो, हरिनाम खजनवाँ।
मनुष्य-जनम तूहूँ फेरू न पैहो, हो फेरू न पैहो,
अवसर बीते मन पछतैहो,
होने न पावे बेकार हो, हरिनाम.॥1॥
नाम-धन बिनु ठोकर बहु खैहो, ठोकर बहु खैहो,
स्वान समान कभी न सुख पैहो।
जैहो तू द्वार हजार हो, हरिनाम.॥2॥
जौं हरिनाम रतन अपनैहो, रतन अपनैहो,
बिनहि प्रयास सकल सुख पैहो।
नाम अभिमत दातार हो, हरिनाम.॥3॥
जग की हाट बहुत भरमायो, बहुत भरमायो,
जनम-दरिद्र करील अघायो।
अब सब दुखहिं बिसार हो, हरिनाम.॥4॥