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मनुहार / बेढब बनारसी
Kavita Kosh से
आज जाओ मान आली .
बात करनी है मुझे --
लाओ इधर तो कान आली .
घुल रहा हूँ स्नेहमें, अलि,
लो हृदय के गेहमें, अलि.
तुम हमारे वास्ते --
बन जाओ अमृतबान आली .
फूल गुलगप्पा बनो मत
नैन बानों से हनो मत
ब्राह्मण भोजन बनो तुम
मैं बनूँ यजमान आली .
लूटती हो दिल हमारा,
क्या किया इसने तुम्हारा
मैं नहीं हिन्दू बिचारा
तुम न हो अफगान आली .
हे प्रिये तेरे प्रणय में,
चोट ऐसी है हृदय में,
काटता जिस भाँति कोई
नया पाद-त्राण आली .