मन्दार-मधुसूदन महिमा / भाग २ / महेश्वर राय
सुन्दर मन्दर गिरि.....
ब्रह्मा, शिव, हनुमान, रिसि, मुनि धरे ध्यान
पशु, पक्षी, विभीषण, नर-नारी करे गान
भगता से भजन करावै मधुसूदना॥11॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
जल बीच जनार्दन निन्दिया-विभोर छलै
उनकर नभिया से शतदल उगि गेलै
ओकरे पै ब्रह्माजी बैठावै मधुसूदना॥12॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
निद्रायण नारायण की नाभि लिग ब्रह्मा ऐलै
हरि-कण-मैलवा से मधु-कैटभ उगि गेलै
ब्रह्मा से विनतिया करावै मधुसूदना॥13॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
ब्रह्मा की विनतिया से देहधरी ज्ञान ऐलै
देवी योगनिद्रा की स्तुति तुरन्त भेलै
भगवती तुरंत जगावै मधुसूदना॥14॥
सुन्दर मन्दर गिरि.....
मधु रे कैटभवा पर, दोनों रे दनुजवा पर
विनती से दया करि, राखी निज जँघवा पर
चकर सुदर्शन चलावै मधुसूदना॥15॥
सुन्दर मन्दर गिरि
विष्णु जी कै पूजै लेली ब्रह्माजी मन्दार ऐलकै
हरि-अनुकम्पा से सृष्टि के वरदान पैलकै
वरदायी वर ब्रह्मा पावै मधुसूदना॥16॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
हिरण्याक्ष दैत मारी, मत्स्यरूप मही धारी
समुद्र-मन्थनमा में पीठ लिए मन्दर भारी
नरसिंह रूप हिरणाकशपु मारै मधुसूदना॥17॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
बामनरूप धरि बलि राजा कै पाताल देलकै
कृष्णबनी कंस मारी, धरती निहाल कैलकै
रामरूप रवणा विनाशै मधुसूदना॥18॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
शाप दे दुर्वाशा रिसि इन्द्र कै श्रीहीन कैलकै
धधकल क्रोधवा से लछमीविहीन कैलकै
दानवगण देवता सतावै मधुसूदना॥19॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
देवता थकित भेलै वृहस्पति पास गेलै
गुरू के मन्तरवा से नारायण के ध्यान कैलै
सागर-मन्थन जुगति बतावै मधुसूदना॥20॥