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मन का कोरा दर्पन / विष्णु सक्सेना
Kavita Kosh से
मन का कोरा दर्पन तेरे नाम करूँ।
भँवरों का मदमाता गुंजन,
तितली की बलखाती थिरकन,
भीनी-भीनी गंध पुष्प की,
कलियों का छलका-सा यौवन
हरा-भरा ये उपवन तेरे नाम करूँ।
मन का कोरा दर्पन तेरे नाम करूँ।
शीतल मेघ छटा केशों में,
पलकों में दुनिया सपनों की,
गालों में है भाव गुलाबी,
अधरों पर बातें अपनों की।
दहका-सा आलिंगन तेरे नाम करूँ।
मन का कोरा दर्पन तेरे नाम करूँ।
करूँ निछावर ऋतुएँ तुझ पर,
बातें करूँ रंगोली से,
दीवाली से करूँ आऱती,
नज़र उतारूँ होली से।
भीगा-भीगा सावन तेरे नाम करूँ।
मन का कोरा दर्पन तेरे नाम करूँ।