भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन की किताब पर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
मन की किताब पर
लिख दूँ सारे आशीर्वाद आज
शुभरात्रि
शब्द के साथ।
कि तुम महको
शब्द से पुष्प बनकर
पुष्प से गन्ध बन बहो।
नेह बन
मन में सदा रहो
जैसे मृतप्रायः में आ जाते प्राण
वैसे ही
प्राण बन रहो
सफ़र कठिन
अकेले चलना दुःस्वप्न
तुम साथ चलो।