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मन के गीत लिखूँ मैं / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
अपनी साँसों के अपनी धड़कन के गीत लिखूँ मैं।
जब-जब तुमसे मुलाक़ात हो मन के गीत लिखूँ मैं।
कितना प्यार दिया है तुमने
कितना प्यार दिया है।
मैंने जो भी चाहा तुमने
वो अधिकार दिया है।
यों ही मुझसे बँधे रहो बंधन के गीत लिखूँ मैं।
पतझर के मौसम में भी सावन के गीत लिखूँ मैं।
जब भी कभी सामने बैठो
मैं बस तुम्हें निहारूँ।
पल-पल ख़ुद को देखूँ, पल-पल
अपना रूप सँवारूँ।
ऐसे मुझे सँवारो तो दरपन के गीत लिखूँ मैं।
मेरे और तुम्हारे अपनेपन के गीत लिखूँ मैं।
यों तो सारी दुनिया को मैं
अपने गीत सुनाऊँ।
लेकिन मन से सदा तुम्हारी
ख़ातिर ही मैं गाऊँ।
तुम भी सँग-सँग गाओ तो बचपन के गीत लिखूँ मैं।
मीठी सुधियों वाले घर-आँगन के गीत लिखूँ मैं।