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मन तू काहे ना करे रजपूती / परमहंस शिवनारायण स्वामी

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मन तू काहे ना करे रजपूती।
असहीं काल घेरि मारत ह जस पिजरा के तूती।
पाँच पचीस तीनों दल ठाड़े इन संग सैन बहुती।
रंगमहल पर अनहद बाजे काहें गइलऽ तू सूती।
शिवनारायन चढ़ मैदाने मोह भरम गइल छूटी।