भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन पछितैहौ भजन बिनु कीने / ललित किशोरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
मन पछितैहौ भजन बिनु कीने।
धन-दौलत कछु काम न आवै, कमल-नयन-गुन चित बिनु दीने॥१॥

देखतकौ यह जगत सँगाती, तात-मात अपने सुख भीने।
ललितकिसोरी दुंद मिटै ना, आनँदकंद बिना हरि चीने॥२॥