मन प्रीति बढा प्रभुचरणन से (होली फाग) / आर्त
मन प्रीति बढा प्रभुचरणन से कलि दारूण क्लेश कटेंगे विषाद मिटेंगे ।।
नित उठि राम भजन कर प्यारे, कृष्ण कथा में तूँ मनवा लगा रे ममता मेघ छँटेंगे ।।
गीता ज्ञान हृदय जो प्रकाशे । पाप तिमिर घन सहजहिं नासे ।।
तब मुक्ति मिले भव बंधन से, निसिदिन हरि नाम रटेंगे विषाद मिटेंगे ।।1।।
माया नटी बहु भाँति नचावे , जग से लगी लौं भजन नहिं भावे किमि अघ भार घटेंगे ।।
भूलेउ न मन चहै हरि सुमिरनवा । प्रिय लागे सुत नारि भवनवाँ ।।
अनुराग जगेउ नहिं सन्तन से, कस भाग रेख पलटेंगे विषाद मिटेंगे ।।2।।
पंच विकार सकल जग घेरे , साधु-असाधु भये धनके चेरे के श्रुति ठाट ठटेंगे ।।
पर निन्दा करि आपु सराहैं । बिनु जप तप खल सब सिद्धि चाहै ।।
नहिं दोष गयो अन्तर्मन से, केहि भाँति सुपन्थ डटेंगे विषाद मिटेंगे ।।3।।
जग में करो कुछ नेक कमाई, परम धरम करो सबकी भलाई तव दुख मेरू हटेंगे ।।
‘आर्त’ निवेदन पर धरू ध्याना । समय चुके न पडे पछताना ।।
अब लगन लगा हरि सुमिरन से, निश्चय भ्रम पर्द फटेंगे विषाद मिटेंगे ।।4।।