भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन रा पग / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
मन री माया
जाणै मन
मन नै जाणै कुण?
निजरां रा
भरमाया पग
टोरै-थामै
मन रा पग।
पग हुवै नीं
हुवै पांगळौ मन
पण भाजै
दड़ाछंट।