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मन ले मन के मेल / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
दिया बर बाती, बाती बर तेल
अंजोर बर चाही, अगिन के मेल।
तइसे मनखे बर मन ले मन के मेल
करौंदा रे मोर, मया के डोर, लामे राहय रे।
बोईर कांटा बइरी बड़ बिछियाय।
मोर मन के मिलौना झन रिसियाय।
लोहा के रूल म भागत हे रेल,
दूनो के जनम-जनम के मेल
करौंदा रे मोर, मया के डोर, लामे राहय रे।
गरजे करिया बादर लउके ल बिजली,
तोला राखेंव लुका के करेजा भीतरी।
घटियारी के तीर-तीर पाके गदबेल,
मया नोहय कोनो हाँसी ठट्ठा-खेल।
करौंदा रे मोर, मया के डोर, लामे राहय न।
उही ल कोरी कहिथे, उही ल बीस,
छिन भर के झगरा, छिन भर के रिस।
मया बिना जिनगी ह हो जथे जेल,
कोनो दुनिया ल पूछ ये गोठ अपेल।
करौंदा रे मोर मया के डोर, लामे राहय न।