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मन वृन्दावन / अनन्या गौड़
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सरल प्रेम जो महके तो मन वृन्दावन हो जाए
बरसे नेह की बरखा यह जग सावन हो जाए
बसा लो तुम हृदय में, यदि कृष्ण-सा मिले कोई
यह मन तुम्हारा राधिका सम पावन हो जाए
समझ लो बात अनकही, उनके भी मन की तुम
चहके फूलों की क्यारी, उपवन आँगन हो जाए
पहचान लें पर-पीर, जग होगा दुखों से दूर
बिखरेगी ख़ुशी हर ओर जहाँ मनभावन हो जाए