भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन / रचना उनियाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नभ के सृदश विस्तृत मन
हिरण की भाँति कुलाँचे भरता
विचरता है
बाह्य व अंतह जगत में।

विद्युत की गति धारकर
तुरंग को पछाड़ता
चंचल चपल चमकृत
करता जाता है।

मन व्योम गंगा में,
आकांक्षाओं के
तारे,
सदैव झिलमिलाते हैं।

योगी श्रेष्ठ
लिप्सा, मोह, वासना,
को विजित कर
मन के नृप बनकर
जीवन दर्शन जी जाते हैं।