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मन / राजू सारसर ‘राज’
Kavita Kosh से
रे मन,
थूं ई बता
थूं है कांई ?
डील रै रूं-रूं रौ विज्ञान
पण म्हूं भण मेल्यौ
म्हनै समझ नीं आई।
परबत-सो मून
लै’रा-सी घरड़ाट
दामणी-स्सी पळपळाट।
सुपनां रा धोरां माथै
हिरणौटां सी कुचमाद
मति भरमावै
पण थूं हाथ ई नीं आवै।
किरड़कांटी री भांत
मारै डाक।
इण डाळी, उण डाळी
फदाक-फदाक।
जथारथ रा फूटरोड़ा
फळ कुतर नाखै
कातर कातर।
पण बाज री निगै सूं
बचणै खातर
थारी निगै चौकस
पण म्हूं बेबस
थूं मांय है ’कै बार ’रै
म्हूं मसळ न्हाखी
समन्दां री छाती।
मिण मैल्यौ आभौ
अर सिस्टी रा पांचूं तŸा
पण थूं हाथ नीं आयौ
म्हूं थनैं समझ नीं पायौ
म्हूं थनैं समझ ई नीं पायौ।