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ममत्व / महेन्द्र भटनागर

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न दुर्लभ हैं
न हैं अनमोल
मिलते ही नहीं
इहलोक में, परलोक में
आंसू .... अनूठे प्यार के,
आत्मा के
अपार-अगाध अति-विस्तार के!
हृदय के घन-गहनतम तीर्थ से
इनकी उमड़ती है घटा,
और फिर ....
जिस क्षण
उभरती चेहरे पर
सत्त्व भावों की छटा _
हो उठते सजल
दोनों नयन के कोर,
पोंछ लेता अंचरा का छोर!