मम कौन कहौँ यह कासोँ कहौँ पुनि साँचिय कोऊ न मानत है ।
जिन्ह व्यापी नहीँ या वियोग विथा सो कहा दुख को पहिचानत है ।
रसिकेश कहूँ बिरही जो मिलै बिरही गति सो उर आनत है ।
नर नारि सँयोग वियोग कहा मिलि कै बिछुरै सोई जानत है ।
रसकेश का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।