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मयक़शों को मस्लेहत से काम लेना चाहिए / मनोहर विजय
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मयक़शों को मस्लेहत से काम लेना चाहिए
होश में रहकर ही फ़िर से ज़ाम लेना चाहिए
देख़ कर शक्ल-ए-हसीं दिल कहता है मेरा ये अब
अपने सर पर इश्क़ का इल्ज़ाम लेना चाहिए
छोड़ कर सब नफ़रतें दिल से भुलाकर रंज़िशें
आप को अब हाथ मेरा थाम लेना चाहिए
बढ़ चली है तश्नगी अब किस कदर ऐ दोस्तो
उनकी आँखों से छलकता जाम लेना चाहिए
इस मुहब्बत को बनाकर ज़िन्दगी की ढाल बस
दुश्मनों से दोस्तों का काम लेना चाहिए
जिसने इस दिल को सिख़ाया है धड़कना ऐ ‘विजय’
हर घड़ी उस मेहरबाँ का नाम लेना चाहिए